रायपुर : हम सभी अधिकतर हवाई जहाज से सफर करने को सोचते रहते हैं. कुछ लोगों ने तो इससे सफर भी किया होगा परंतु क्या कभी इसके टायर के बारे में जानने की कोशिश किए हैं कि यह किस चीज से बना होता है और इसमें कौन सी गैस भरी जाती है, जिससे टेक ऑफ […]
रायपुर : हम सभी अधिकतर हवाई जहाज से सफर करने को सोचते रहते हैं. कुछ लोगों ने तो इससे सफर भी किया होगा परंतु क्या कभी इसके टायर के बारे में जानने की कोशिश किए हैं कि यह किस चीज से बना होता है और इसमें कौन सी गैस भरी जाती है, जिससे टेक ऑफ और लैंडिंग करते समय घर्षण होने के बावजूद भी गर्म होकर नहीं फटते? तो चलिए जानते है इन सभी चीजों के बारे में।
बता दें कि प्लेन का टायर सिंथेटिक रबर कम्पाउंडस के कॉम्बिनेशन से निर्माण होता है। इसके निर्माण में एल्युमिनियम, स्टील व नायलॉन का इस्तेमाल किया जाता है. इन सभी चीजों का प्रयोग टायर को मजबूती प्रदान करने के लिए किया जाता है। इसी वजह से हवाई जहाज के टायर का वजन कई हजार टन होता है साथ ही पैदा होने वाले प्रेशर को भी कम करता है। जिसके कारण टायर कभी नहीं फटता है।
प्लेन के टायर में नाइट्रोजन गैस का उपयोग किया जाता है. नाइट्रोजन एक ऐसा गैस है जो गैर ज्वलनशील है। इसलिए हाई टेम्परेचर और प्रेशर के बदलने का सामान्य हवा की अपेक्षा कम प्रभाव पड़ता है। नाइट्रोजन गैस की उपस्थिति होने की वजह से टायरों में भयंकर घर्षण पैदा होने के बाद भी उसमें आग नहीं लगती। प्लेन के टायर 900 पाउंड प्रति वर्ग इंच के प्रेशर को भी झेल सकता है।
वहीं बता दें कि जहाज के टायरों की साइज ट्रक के मामले में दो गुना और कार के मामले में छह गुना होता है। इसके टायर का साइज क्या होगा यह इसके आकर पर डिपेंड करता है। फिर भी फ्लाइट के टायरों को बनाते वक्त उनके 38 टन वजन कैपेसिटी को सहने के हिसाब से जांच करने के बाद निर्माण किया जाता है। प्रत्येक टायर का वजन लगभग 110 किलोग्राम तक का होता है।
नए टायर का लगभग एक बार में करीब 500 बार प्रयोग किया जाता है. इसके बाद उनको रिट्रेड करने के लिए भेजा जाता है जहां इन पर नई ग्रीप लगाईं जाती है जिसके बाद फिर से उसका उपयोग 500 बार तक कर सकते हैं। ग्रीप चढाने की भी अधिकत्तर सीमा 07 होतो है अर्थात एक टायर का प्रयोग लगभग 3500 बार किया जाता है।