रायपुर। सीएम भूपेश बघेल ने भाजपा नेताओं के दिल्ली दौरे को लेकर तंज कसते हुए कहा है कि चार साल के बाद भाजपा को छत्तीसगढ़ की याद आई है. भाजपा नेताओं के इस दौरे पर सवाल खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि भाजाप नेता आर्थिक सर्वेक्षण, बीस क्विंवटल चावल की खरीदी या राजभवन में अटका […]
रायपुर। सीएम भूपेश बघेल ने भाजपा नेताओं के दिल्ली दौरे को लेकर तंज कसते हुए कहा है कि चार साल के बाद भाजपा को छत्तीसगढ़ की याद आई है. भाजपा नेताओं के इस दौरे पर सवाल खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि भाजाप नेता आर्थिक सर्वेक्षण, बीस क्विंवटल चावल की खरीदी या राजभवन में अटका आरक्षण बिल को रुकवाने के लिए दिल्ली का चक्कर काट रहे हैं. ये लोग अपने हितों को साधने के लिए जा रहे हैं ना कि प्रदेश के हित के लिए. अभी तक छत्तीसगढ़ को रायल्टी और GST मिलना बाकी है.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि चुनाव नजदीक आते ही भाजपा नेता दिल्ली पहुंचने लगते हैं. उन्होंने कहा कि ED के अधिकारियों ने सरकार जो पत्र लिखा है. उसके आधार पर हमने जांच करना शुरु करा दी है. इसके बाद उन्होंने कहा कि ये कब बताएंगे कि सीएम सर कौन है और सीएम मैडम कौन हैं? चिटफंड कंपनी के घोटाले में जो लोग शामिल थे. उनकी जांच करने के लिए कब निकलेंगे।
मुख्यमंत्री भूपेश ने कहा कि सबसे पहले ED अपने शासनकाल का सही से एक बार जांच करा ले. इसके बाद उन्होंने कहा कि मैं अपने खाद्य मंत्री से कहूंगा कि पीयष गोयल और रमन सिंह को एक चिट्ठी लिखा जाए. हमने जो जांच करवाया है उसकी रिपोर्टऔर विधानसभा में जो जवाब तो गया है कि कुछ शॉर्टेज हैं और जांच चल रही है, ऐसा मानना है कि यह कार्रवाई एक महीने के अंदर पूरी हो जाएगी।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि बीजेपी के विधायकों को छत्तीसगढ़ के नागरिकों के साथ हो रहे भेदभाव का विरोध केंद्र की मोदी सरकार के सामने डट कर करना चाहिए. ये राजभवन में प्रदेश के 76 प्रतिशत आरक्षण राशी, फंडों के साथ राज्य हित में पारित कई राशी को रोककर रखे है. उसे समय पर पारित कराने का दबाव बनाना चाहिए. केंद्र सरकार छत्तीसगढ़ के अलग-अलग फंडों में 55 हजार करोड़ की बकाया राशी को देने में टालमटोल कर रही है. न्यू पेंशन स्कीम की 17000 करोड से ज्यादा का राशि बाकी है. बस्तर जिलें में बटालियन के पीछे खर्च हुई करीब 11000 करोड रुपए अभी तक नहीं मिला है. कोयला रॉयल्टी के 4500 करोड़ की राशी बाकी है. इसके अलावा केंद्रीय योजनाओं की जो अंशदान है. वह भी भुगतान आधा-अधूरा ही है।