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स्कूल की मनमानी से परेशान पैरेंट्स, सालाना बढ़ती फीस से हो रही जेब ढीली

रायपुर। नए शिक्षण सत्र 2025-26 की शुरुआत हो चुकी है। इसके साथ ही निजी स्कूलों की मनमानी भी शुरू हो गई है। प्राइवेट स्कूलों ने बच्चों की किताबें, यूनिफॉर्म और फीस में बढ़ोतरी की है, जिसे खरीदने के लिए अभिभावकों को अपनी जेब ढीली करनी होगी। प्राइवेट स्कूलों की बढ़ती मनमानी से अभिभावकों पर आर्थिक […]

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private school fees hike
  • April 11, 2025 4:38 pm Asia/KolkataIST, Updated 1 day ago

रायपुर। नए शिक्षण सत्र 2025-26 की शुरुआत हो चुकी है। इसके साथ ही निजी स्कूलों की मनमानी भी शुरू हो गई है। प्राइवेट स्कूलों ने बच्चों की किताबें, यूनिफॉर्म और फीस में बढ़ोतरी की है, जिसे खरीदने के लिए अभिभावकों को अपनी जेब ढीली करनी होगी। प्राइवेट स्कूलों की बढ़ती मनमानी से अभिभावकों पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है।

सालाना बढ़ती स्कूलों की फीस

स्कूल प्रबंधन पैरेंट्स को तय दुकानों से ही किताब और यूनिफॉर्म खरीदने के लिए मजबूर करते हैं। ऐसे में पैरेंट्स को कई गुना ज्यादा दाम में किताबें और यूनिफॉर्म खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। प्री-नर्सरी क्लास की सालाना फीस बढ़कर 15 से 25 हजार रुपये हो गई है। इस बढ़ती फीस के कारण मिडिल क्लास छात्रों को अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने से पहले सोचना पड़ रहा है। बढ़ती फीस गरीब घरों में एक चिंता का विषय बन गया है।

आर्थिक बोझ से दब रहे पैरेंट्स

बढ़ी हुई फीस और महंगी यूनिफॉर्म के कारण पैरेंट्स की आर्थिक स्थिति का बोझ बढ़ता जा रहा है। दुर्भाग्य है कि सरकार और जनप्रतिनिधि इस मुद्दे पर कुछ भी कहने को तैयार नहीं हैं। जिससे पैरेंट्स को परेशान होना पड़ रहा है। वहीं अभिभावकों को यह भी डर है कि यदि वे इस विषय पर आवाज उठाते हैं, तो उनके बच्चों को स्कूल से निकाल न दिया जाए। इस डर के कारण वे खुलकर इसका विरोध भी नहीं कर पा रहे हैं।

शिक्षा की गुणवत्ता एक चिंता

सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी और शिक्षण की गुणवत्ता पहले ही एक चिंता का विषय है। यही वजह है कि पैरेंट्स निजी स्कूलों की ओर रुख करते हैं। लेकिन अब प्राइवेट स्कूल भी बच्चों के भविष्य में कांटा बन रहे हैं। निजी स्कूलों की बढ़ती फीस और खर्चों ने उन्हें दुविधा में डाल दिया है। माता-पिता यह नहीं समझ पा रहे हैं कि किस तरह वे अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिला सकते हैं। स्कूल प्रबंधन पैरेंट्स को एक खास दुकान से किताबें और स्टेशनरी खरीदने के लिए दबाव बना रहे हैं। दुकानदार भी मनमानी कीमत पर अपना सामान बेच रहे हैं।

दुकानदारी भी कर रहे मनमानी

अभिभावक अगर बाहर किसी दुकान से स्टेशनरी खरीदते हैं तो स्कूल साफ मना कर देता है। मजबूर होकर पैरेंट्स को महंगे दामों पर ही स्टेशनरी खरीदारी करनी पड़ती है। दुकानदार भी पैरेंट्स को धमकाते हैं कि लेना है तो पूरा सेट लो, वरना हम अपना सामान नहीं बेचेंगे। हर साल-दो साल में किताबें और यूनिफॉर्म बदल दी जाती हैं जो किसी और बच्चे के किसी काम की नहीं होती।


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