रायपुर। बड़े बुजुर्ग कहते आ रहे हैं कि राम से बड़ा राम का नाम है। भगवान राम की भक्ति देशभर में अलग अलग तरह से की जाती है। ऐसा ही अनोखा राम भक्त छत्तीसगढ़ का रामनामी समाज है. रामनामी समाज के पैर से लेकर सिर तक यानी रोम रोम में राम राम बसें हैं।
पूरे शरीर में गुदवाते है राम नाम
देशभर में भगवान राम के मंदिर, मूर्ति की पूजा की जाती है। लेकिन ये रामनामी संप्रदाय मूर्ति पूजा नहीं करता है। हालांकि निर्गुण राम राम के नाम को दिल की गहराइयों में स्थान दिया है। इसलिए राम नाम को कण कण में बसाने का काम करते हैं। इस संप्रदाय से जुड़े लोग पूरे शरीर पर राम राम का नाम गुदवाते यानि की राम का नाम पूरे शरीर में लिखवाते हैं।
कैसे हुई रामनामी पंथ की शुरुआत?
रामनामी पंथ की शुरुआत किस स्थिति में हुई, इसके कोई ठोस दस्तावेज नहीं मिले हैं। लेकिन रामनामियों में एक आम सहमति है कि 1890 के दशक में जांजगीर-चांपा के एक गांव चारपारा में एक दलित युवक परशुराम द्वारा रामनामी संप्रदाय की स्थापना की गई। छत्तीसगढ़ रामनामी, राम-राम भजन संस्था के सचिव गुलाराम रामनामी बताते हैं कि रामनामी एक विचारधारा है। हमारे पूर्वजों को मंदिर जाने से रोका गया, तब हमारे पूर्वजों ने अपने पूरे शरीर में राम का नाम का गोदना गोदवा लिया। 1890 के आसपास रामनामी पंथ की शुरुआत परशुराम नाम के व्यक्ति ने की थी। कुछ लोग परशुराम को भगवान का दूत भी मानते हैं। तब जातिगत भेद के कारण हम लोगों को मंदिरों में नहीं जाने दिया जाता था।
रामनामी क्या कोई भी बन सकता है?
रामनामी पंथ के लोग शरीर पर “राम-राम” का गुदना यानि स्थाई टैटू बनवाते हैं, राम-राम लिखे वाले ही वस्त्र धारण करते हैं, राम नाम लिखा मोर की पंख से बना मुकुट पहनते हैं, राम लिखा घुंघरू बजाते हैं, घरों की दीवारों पर राम-राम लिखवाते हैं, आपस में एक दूसरे का अभिवादन राम-राम कह कर करते हैं, यहां तक कि एक-दूसरे को राम-राम के नाम से ही पुकारते भी हैं। लेकिन क्या ऐसा करने से ही कोई भी रामनामी बन सकता है? इसके उत्तर में गुलाराम कहते हैं रामनामी बनने के लिए आचरण भी वैसा ही होना चाहिए। मांस-मदिरा का सेवन त्यागना होगा, बुरे कर्मों की चेष्टा नहीं रखनी होगी, व्यसन से दूर होना होगा, किसी भी गलत काम में लिप्त नहीं होना होगा। रामनामी होना सिर्फ गोदना गुदवा लेना या राम-राम प्रिंट के कपड़े पहन लेना नहीं, बल्कि एक तपस्या है।
रामनामियों के राम कौन हैं?
सनातन धर्म को मानने वालों में राम भक्ति को लेकर अपने अलग-अलग तर्क हैं, अलग तरीके हैं। ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि रामनामियों के राम कौन हैं? छत्तीसगढ़ रामनामी राम-राम भजन संस्था की अध्यक्ष 84 वर्षीय सेत बाई कहती हैं- हम मंदिर जाते हैं, लेकिन पूजा नहीं करते, हम रामभजी हैं, राम का नाम भजते हैं, राम हर जगह हैं, राम आप में हैं, राम मुझमें हैं, राम साथी में हैं राम हाथी में हैं। राम के लिए किसी विशेष जगह जाने की जरूरत नहीं हैं। ऊर्जा से भरी आवाज में सेत बाई कबीर वो कहती है काकस्तूरी कुंडल बसे मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि. ऐसे घटी-घटी राम हैं दुनिया जानत नाँहि दोहा सुनाती हैं-
जमीन पर बैठे बातें सुन रहे संप्रदाय के रामसिंह सुतिरकुली रामनामी कहते हैं- हमारे लिए राम ही सबकुछ हैं, राम हमारे भगवान हैं. राम हमारे पिता हैं, हमारे लिए राम पानी हैं, अन्न हैं, हवा हैं सबकुछ हैं।