रायपुर। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर, दंतेवाड़ा और सुकमा जिलों के अंदरूनी इलाकों के निवासी 400 आदिवासी युवकों के नए बैच को सीआरपीएफ ने एक विशेष भर्ती अभियान के तहत कांस्टेबल के तौर पर नियुक्त करने के लिए चुना है। आदिवासी युवा ज्यादातर ‘बस्तरिया बटालियन’ का भाग होंगे, जिसका नाम छत्तीसगढ़ के तत्कालीन अविभाजित बस्तर जिले के नाम पर रख दिया गया था।
पहले भी कई सौ आदिवासी युवकों को किया गया तैनात
बता दें कि इससे पहले भी ऐसे कई सौ मूल निवासी आदिवासी युवकों को प्रशिक्षण के बाद सीआरपीएफ द्वारा तैनात किया गया था। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने जानकारी दी कि सभी चुने हुए 400 मूल निवासी आदिवासी युवाओं को नियुक्ति प्रस्ताव भेज दिया गया है।
कब हुई थी ‘बस्तरिया बटालियन’ की स्थापना की घोषणा?
2016 में केंद्र द्वारा ‘बस्तरिया बटालियन’ की स्थापना का ऐलान हुआ था। कर्मियों को बड़े पैमाने पर बस्तर क्षेत्र से चुना गया था, और उन्हें छत्तीसगढ़ में माओवादी विरोधी अभियानों को अंजाम देने का काम दिया गया था। इस तरह की बटालियन बनाने के पीछे का लक्ष्य नक्सलियों के विरूद्ध लड़ाई में सुरक्षा बलों को अधिक लाभ देना है। जिन लोगों को भर्ती के लिए चुना गया है, वे स्थानीय भाषा अच्छे से जानते हैं, स्थान से भी भली भांति परिचित हैं और चरमपंथियों के बारे में आसानी से खुफिया जानकारी जुटा पाएंगे।
स्थानीय आबादी में जाएगा सकारात्मक संदेश
बताते चलें कि इससे स्थानीय आबादी में एक सकारात्मक मैसेज जायेगा, क्योंकि बड़ी संख्या में मूल निवासी आदिवासी युवा सीआरपीएफ के जरिए सरकार से जुड़ते हुए दिख रहे हैं। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि सरकार ने आदिवासी पुरुषों और महिलाओं के लिए वजन और ऊंचाई के मामले में भर्ती में छूट का ऐलान कर दिया था.
काम करने के लिए किया जाएगा प्रशिक्षित
बताया जा रहा है कि रंगरूटों को माओवाद से प्रभावित क्षेत्रों में काम करने के लिए ट्रेनिंग दी जाएगी और इस तरह की एक आदिवासी बटालियन न केवल कई लोगों को रोजगार प्रदान करने में सहायता करेगी बल्कि सीआरपीएफ को प्रभावी ढंग से संचालन की योजना बनाने में सहयोग भी कर सकती है। सीपीआई ने अतीत में स्थानीय लोगों को सीआरपीएफ या राज्य पुलिस बलों में सम्मिलित होने के विरूद्ध चेतावनी दी थी।