Sunday, November 24, 2024

आरक्षण विधेयक पर हाई कोर्ट का राज्यपाल सचिवालय को नोटिस, मांगा जवाब

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने आरक्षण विधेयक को लेकर दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की है। हाई कोर्ट के जस्टिस रजनी दुबे ने इस मामले में सुनाई की हैं। जहां पर राज्यपाल सचिवालय को नोटिस जारी करके एक सप्ताह के अंदर जवाब मांगा है।

कपिल सिब्बल ने पेश किया तर्क

बता दें कि आरक्षण के मुद्दे पर सामाजिक कार्यकर्ता व एडवोकेट के साथ ही राज्य सरकार ने भी याचिका दायर की है, जिस पर सोमवार को शासन की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने तर्क दिया। उन्होंने कहा कि राज्यपाल को सीधे तौर पर विधेयक को रोकने का कोई अधिकार नहीं है।
विधानसभा में विधेयक पारित होने के बाद राज्यपाल सिर्फ सहमति या असमति व्यक्त कर सकती हैं। बिना किसी ठोस वजह के बिल को इस तरह से लंबे समय तक रोका नहीं जा सकता या राजभवन में लंबित नहीं रखा जा सकता। उन्होंने कहा कि राज्यपाल अपने संवैधानिक अधिकारों का दुरुपयोग कर रही है।

क्या है शासन की याचिका में

राज्य शासन ने अपनी याचिका में कहा है कि आरक्षण के मुद्दे पर राज्यपाल से सहमति लेकर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया जिसमें जनसंख्या के आधार पर प्रदेश में 76 फीसद आरक्षण देने का प्रस्ताव पारित किया है। इसमें आदिवासी वर्ग-ST को 32%, अनुसूचित जाति-SC को 13% और अन्य पिछड़ा वर्ग-OBC को 27% आरक्षण का अनुपात तय हुआ है। इसके अलावा सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% आरक्षण देने का भी प्रस्ताव है।नियमानुसार विधानसभा से आरक्षण बिल पास होने के बाद इस पर राज्यपाल का हस्ताक्षर होना है। हस्ताक्षर करने के लिए राज्यपाल के पास बिल भेजा गया है राज्यपाल द्वारा बिल को लंबे समय से लंबित रखा है।

याचिकाकर्ता अधिवक्ता ने लगाए आरोप

याचिकाकर्ता अधिवक्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि राज्यपाल कब-कब और कहां- कहां किन राजनीतिक पदों पर रही है। साथ ही आरोप लगाया है कि राज्यपाल अपनी भूमिका का निर्वहन न करते हुए राजनीतिक पार्टी के सदस्य की भूमिका निभा रही है। राज्यपाल जिस पार्टी में रही उनके इशारों पर आरक्षण बिल में हस्ताक्षर नहीं कर रही हैं।
याचिका में यह भी बताया गया है कि संवैधानिक रूप से विधानसभा में कोई भी बिल पास हो जाता है तो उसे हस्ताक्षर के लिए राज्यपाल के पास भेजा जाता है। निर्धारित अवधि में राज्यपाल को हस्ताक्षर करना होता है। अगर राज्यपाल की असहमति है तो वह बिना हस्ताक्षर किए असहमति जताते हुए राज्य शासन को विधेयक को लौटा सकती हैं। विधानसभा उसमें किसी भी तरह के संशोधन या बिना संशोधन के पुनः राज्यपाल को भेजता है तो राज्यपाल को तय समय के भीतर सहमति देना जरूरी है।

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