रायपुर : छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में 24 घंटे पहले हुए नक्सली हमले को लेकर अब कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। सवाल उठना लाजमी भी है, सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि काफिला निकलने से पहले रोड ओपनिंग पेट्रोल की जांच हुई कि नहीं? यदि यह जांच हुई तो इस रूट पर लगे एंबुस की जानकारी पेट्रोल टीम को क्यों नहीं थी। यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि नक्सली बाहुल्य क्षेत्र को देखते हुए काफिले के निकलने से पहले पेट्रोल टीम रुट पर संभावित एंबुश आदि की जांच करती है।
क्या थी घटना
बीते बुधवार को माओवादियों ने पुलिसकर्मी के काफिले पर घात लगा कर हमला बोल दिया था, जिसमें 11 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। यह सभी पुलिसकर्मी काफिले में शामिल तीसरी गाड़ियों में सवार थे।
पूरा इलाका माओवादियों का गढ़
यह पूरा इलाका माओवादियों का गढ़ है। ऐसे में जब भी सुरक्षा बलों का काफिला इस इलाके से गुजरता है तो पहले एक छोटी सी पेट्रोलिंग टीम रास्ते की जांच करने के लिए निकलती है। सब कुछ सही पाए जाने पर पेट्रोलिंग टीम काफिला को हरी झंडी दिखा देती है फिर जाकर काफिला आगे रवाना होता है। बुधवार को ऐसा कुछ नहीं किया गया। इसलिए ही सुरक्षा में चूक हुई।
ग्रामीण बनकर छिपे थे
सुरक्षाकर्मियों पर हमला करने के लिए ग्रामीणों को धमका कर उसी स्थान पर उत्सव मनाने के लिए बाध्य किया था, जहां से सुरक्षाकर्मियों का काफिला निकलना था। ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें नहीं पता था कि नक्सली पुलिस के काफिले पर हमला करने के प्लान के तहत यहां पर आए हैं। उधर, डीआरजी के अधिकारियों ने बताया कि रोड ओपनिंग पेट्रोलिंग टीम को बाइक से चलने और चेक करने की व्यवस्था है, लेकिन करीब दो महीने से यह टीम भी चार पहिया वाहनों से निकल रही है। बताया जा रहा है कि इस टीम से यहीं चूक हुई, जिसका खामियाजा 11 जवानों को जान देकर चुकाना पड़ा।