रायपुर। अमेरिका ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी है। ट्रंप के नए टैरिफ नियमों से कई देश चिंता में है। खासकर एशिया-पैसिफिक देश। एशिया पैसिफिक के देशों पर इसका बुरा असर पड़ने की संभावना है। एशियाई देशों पर इसके नकारत्मक असर पड़ने की बात सामने आ रही है। ‘फेयर एंड रेसिप्रोकल प्लान’ पर हस्ताक्षर […]
रायपुर। अमेरिका ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी है। ट्रंप के नए टैरिफ नियमों से कई देश चिंता में है। खासकर एशिया-पैसिफिक देश। एशिया पैसिफिक के देशों पर इसका बुरा असर पड़ने की संभावना है। एशियाई देशों पर इसके नकारत्मक असर पड़ने की बात सामने आ रही है।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 13 फरवरी को ‘फेयर एंड रेसिप्रोकल प्लान’ पर अपने हस्ताक्षर कर दिए हैं, जिसके तहत अमेरिका अपने इम्पोर्ट टैरिफ को अपने ट्रेड पार्टनर देशों के बराबर करना चाहता है। आम भाषा में कहे तो कोई देश अमेरिकी सामानों पर ज्यादा टैरिफ लगाता है तो अमेरिका भी उस देश के सामानों पर उतना ही टैरिफ लगा सकता है। इस नीति से भारत जैसे देशों पर भी असर पड़ने की संभावना है।
इस संभावित बढ़ोतरी के असर को लेकर रेटिंग एजेंसी मूडीज का कहना है कि भारत पर इसका असर बाकी देशों की तुलना में कम होगा, लेकिन इसके पहले एसएंडपी ने चेतावनी दी है कि भारत को इससे सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है। भारतीय सामानों पर अमेरिका में टैरिफ बढ़ने के असर को पूरी तरह समझने के लिए ये जानना जरुरी है कि दोनों देशों के बीच कितना व्यापार होता है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है। 2024 में दोनों देशों के बीच 129.2 अरब डॉलर का व्यापार होता था।
2023-24 में भारत ने अमेरिका को 77.52 अरब डॉलर का निर्यात किया था। अप्रैल 2024 से जनवरी 2025 तक भारत का अमेरिका को कुल निर्यात 68.47 बिलियन डॉलर का रहा। ऐसे में मूडीज के मुताबिक, अमेरिकी टैरिफ से एशिया-पैसिफिक देशों के निर्यात पर प्रभाव पड़ेगा, लेकिन भारत का इस मामले में जोखिम कम है, क्योंकि केवल कुछ खास सेक्टर्स जैसे कपड़ा, दवाइयां और खाने-पीने के सामानों पर ही इसका बुरा असर पड़ सकता है।
फिलहाल अमेरिका और भारत के बीच बातचीत चल रही है, जिससे इसके असर को कम किया जा सके। भारत सरकार अमेरिकी मांगों पर विचार कर रही है जिनमें कुछ अमेरिकी सामानों पर टैरिफ को कम करना। अमेरिकी खेती के सामानों के लिए बाजार खोलना और अमेरिकी ऊर्जा खरीद को बढ़ाना। इन सभी मुद्दों पर बातचीत चल रही है। इसके बदले भारत 2025 तक एक नया व्यापार समझौता चाहता है, लेकिन अगर ये टैरिफ लागू हुए तो भारत के कपड़ा, दवा और खेती से जुड़े कारोबार पर दबाव पड़ेगा।