रायपुर। बंगाल की दुर्गा पूजा पूरी दुनिया में प्रसद्धि है। कोलकाता की तर्ज पर बिलासपुर में भी साल 1923 से मां की पूजा की जाती है। दुर्गा उत्सव मनाने के लिए हर साल कई राज्यों से लोग यहां आते हैं। यहां के पंडालों में बंगाली संस्कृति और उत्सव की झलक दिखाई देती है।
मां दुर्गा की पूजा करते है
पंचमी तिथि से विजय दशमी तक यहां का माहौल देखने लायक होता है। संस्कारधानी में पंडाल निर्माण का कार्य शुरू हो चुका है। हर साल दुर्गा पूजा मनाने सभी लोग बेसब्री से इंतजार करते है। नवरात्र के पंचमी तिथि से मां दुर्गा को पंडालों में स्थापित किया जाता है। पंचमी तिथि 7 अक्टूबर को है। हर साल बंगाल से बड़ी संख्या में पुजारी बिलासपुर आते हैं, जो पंडालों में विधि-विधान के साथ मां दुर्गा की पूजा करते हैं।
अलग-अलग थीम से तैयार पंडाल
पहले दिन शाम को बोधन पूजा की परंपरा को पूरा किया जाता है। पंडितों द्वारा बेल की डगाल पर माता को स्थापित करने की प्रार्थना की जाती है। बंगाल में दुर्गा प्रतिमा और पंडाल की कला अनूठी होती है। हर साल कलाकार पारंपरिक व आधुनिक शैलियों का इस्तेमाल करके मां दुर्गा की भव्य प्रतिमाएं तैयार करते हैं, जो शक्ति, सौंदर्य और करुणा की प्रतीक होती हैं। पंडालों को अलग-अलग थीमों के तहत सजाया जाता है। जिनमें पर्यावरण, संस्कृति और समकालीन मुद्दों की झलक दिखाई देती है।
दुर्गोत्सव की पहल बंगाली एसोसिएशन ने की
शिल्पकारों की रचनात्मक कार्यशैली पंडालों में कला और वास्तुकला के संगम को प्रदर्शित करती है। जो लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षक का केंद्र बनती हैं। ठीक उसी प्रकार बिलासपुर में भी यह संगम दिखाई देता है। यह पर्व आस्था और सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत उदाहरण पेश करती है। हेमूनगर निवासी भानू रंजन प्रधान का कहना है कि बिलासपुर में दुर्गोत्सव का आरंभ बंगाली एसोसिएशन ने की थी। साल 1923 में जब बिलासपुर केवल रेल परिचालन के लिए जाना जाता था।