रायपुर। 22 जून यानी आज देव स्नान पूर्णिमा मनाई जाएगी। यह दिन भगवान जगन्नाथ,देव बलभद्र और देवी सुभद्रा के लिए खास माना जाता है। देव स्नान पूर्णिमा के दिन ओडिशा और अलग-अलग मंदिरों में स्थापित भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहनों की खास तरीके से स्नान कराया जाएगा। स्नान से पूर्व भगवान जगन्नाथ और उनके भाई -बहनों की भव्य यात्रा निकाली जाती है। इसलिए इसे स्नान पूर्णिमा कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि रथ यात्रा से पहले स्नान पूर्णिमा एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
विधिपूर्वक की जाएगी स्नान प्रक्रिया
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन रायपुर के मंदिरों में भगवान जगन्नाथ उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र की आज विधिपूर्वक स्नान कराने की परंपरा निभाई जाएगी। मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते है। अगले 15 दिनों तक भगवान जगन्नाथ को काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन बलभद्र और सुभद्रा रथ यात्रा के दिन तक पूरी तरह से ठीक हो जाए। मान्यताओं के मुताबिक भगवान जगन्नाथ ज्येष्ठ पूर्णिमा की भीषण गर्मी से बचने के लिए अत्यधिक स्नान करते है। जिस कारण वह बीमार पड जाते है। बीमारी से राहत दिलाने के लिए भगवान जगन्नाथ को 15 दिनों तक काढ़ा पिलाया जाता है। लगातार 15 दिनों तक औषधियुक्त काढ़ा पिलाने से भगवान जगन्नाथ स्वस्थ हो जाते है।
108 कलशों द्वारा कराया जाएगा स्नान
पुरानी बस्ती के टुरी हटरी इलाके में स्थित 400 साल से ज्यादा पुराने जगन्नाथ मंदिर में हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ की देव स्नान पूर्णिमा मनाई जाती है। इस दिन भगवान को स्नान कराने की परंपरा का पालन किया जाता है। ऐतिहासिक दूधाधारी मठ द्वारा संचालित जगन्नाथ मंदिर के पुजारी पंडित तिलकदास बताते है कि मठ के महंत राजेश्री रामसुंदरदास के नेतृत्व में पुराने कुएं से कलश में जल भरकर मूर्तियों को स्नान कराया जाता है। मंदिर के गर्भगृह से मूर्तियों को निकालकर कुएं के पास रखा जाता है और स्नान की प्रक्रिया आरंभ की जाती है। पूरे 108 कलशों के जल से भगवान जगन्नाथ और देव बलभद्र और बहन सुभद्रा को स्नान कराया जाता है। इन कलशों में गंगा, यमुना समते कई सारी नदियों का जल होता है। जिसमें गुलाब की पत्तियां, चंदन, सुंगंधित इत्र डाला जाता है। भगवान जगन्नाथ की स्नान पूर्णिमा के शूभ अवसर पर श्रद्धालुओं का भीड़ लगी पड़ी है।